काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी । कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ Your browser isn’t supported any more. Update it https://shivchalisas.com